हास्य-व्यंग्य : द मोनू ट्रायल

हमारे देश में लीगल ट्रायल, मीडिया जैसे शब्द अक्सर ट्रायल में सुनाई पड़ते हैं. इधर एक नया शब्द सुनायी पड़ रहा है द मोनू ट्रायल.
ये एक नए किस्म का ट्रायल है जो गिद्ध पत्रकारिता से उपजा है. ये ट्रायल उसी तरह होता है जैसे राखी सांवत से भारत की लुक ईस्ट पालिसी पर उनके विचार लेना. मतलब इसमें वो प्रश्न पूछे जाते हैं जो बन्दे ने पहली बार सुने हों और फ़िर पलटकर उनसे विस्मयकारी जवाब प्राप्त करना.
हमारे भी गांव में एक मोनू था. अति वाचाल और अति महत्वाकांक्षी. मोनू स्कूल जाता था कभी -कभार. उसका एक ही चस्का था दिन भर चटर -पटर चुगते रहने के बावजूद गले से ऊपर भरपेट भोजन और मोबाइल पर यूट्यूब देखना. ना स्कूल जाना और ना छोटे भाई बहनों की देखभाल -पढ़ाई में मदद. इसके अलावा घर के ना किसी भी काम में मदद ना ही बकरी -गाय की देखभाल करना. गांव में कब तक कोई चाट खिलाता चटपटी बातों पर.
“मन रहा बढ़िया
करम रहा गड़िहा “
इसी अवधी कहावत जैसी थी तराई के मनहरण उर्फ मोनू की ज़िंदगी.

बाप बेचारा बकरी पालकर, दो बीघे की खेती करके मोनू और परिवार को पाल रहा था. लेकिन मोनू को तो यूट्यूब और फेसबुक रील पर आना था, मटरगश्ती और चटपटे भोजन के साथ. मोनू वैसे तो सोलह साल का था लेकिन कद ना बढ़ने और शरीर में रोयां -बाल ना निकलने की वजह से वो खुद को बारह साल का ही बताता रहा है.
तो मोनू को किसी ने बताया कि नरम निवाले का जुगाड़ करना हो तो मीडिया में आ जाओ. अगर मीडिया में आना है तो मंत्री जी के पास पहुँचों. वहां मीडिया ही मीडिया रहता है.
अगर मीडिया में बात बन गयी तो फिर मौजा ही मौजा.
मोनू ने मंत्री जी से रोते हुए कहा –
“हम पढ़ -लिख कर देश की सेवा करना चाहते हैं सर ,लेकिन गरीब हैं “.
मीडिया मनहरण की इस बात पर मुग्ध हो गया और मीडिया था सो मोनू की तालीम का इंतजाम तुरन्त हो गया.
कुछ दिन गांव में मोनू से आन द कैमरा पूछा गया-
“आप क्यों पढ़ना चाहते हैं “?
“आईएएस बनकर देश की सेवा करना चाहते हैं “मोनू ने हाथ लहराते हुए कहा.
“आप किस क्लास में हैं अभी और क्या -क्या करते हैं “ माइक ने पूछा?
“मैं क्लास पांच में हूँ अभी. दिन रात पढ़ाई करता हूँ ,अपने भाई -बहनों को पढ़ाता हूँ. उससे

समय बचता है तो अपने टोले भर के बच्चों को बटोरकर पढ़ाता -लिखाता हूँ. उसी से मेरा पढ़ाई का खर्चा निकल जाता है. लेकिन अब अच्छी पढाई में ज्यादा खर्चा लगता है और मेरी कमाई का पूरा पैसा मेरा बापू ताड़ी पीने में उड़ा देता है “ये कहते हुए मोनू बहुत गमगीन हो गया.
माइक और कैमरा मोनू के गरीब बाप की तरफ घूम जाता है. वो बाप जो लौंग -इलायची तक नहीं खाता.उसकी तरफ माइक घूमता है और पीछे से आवाज आती है –
“ये देखिये ,इस खूंखार बाप को इस विलेन बाप को जो मासूम बच्चे की कमाई ताड़ी पीने में उड़ा देता है”.
गरीब बाप डरा -सहमा चुपचाप खड़ा रहता है और सोचता है कि बड़े -बड़े लोग आए हैं, हो सकता है मेरे मोनू को ले जाएं तो उसकी अच्छी पढाई -लिखाई हो जाये, ये सब ज़िल्लत के बोल सुनकर भी औलाद का हित सोचकर वो चुप ही रहता है.
दूसरा माइक मोनू से पूछता है –“लेकिन गांव में तो पढाई मुफ्त है, फिर आपको क्या दिक्कत है “?
“गांव में इंग्लिश वाले शुक्ला सर और गणित वाली जरीना मैडम अपना विषय नहीं पढ़ा पातीं, इसलिये हमको किसी बड़े स्कूल में सरकार भेजे” मोनू कहता है.
“वैसे ये बात तुम कैसे कह सकते हो कि सरकारी स्कूल के सर और मैडम अपना विषय ठीक से नहीं जानते ? अच्छा अपने गांव की अंग्रेज़ी में स्पेलिंग बताओ और ग्यारह का पहाड़ा सुनाओ तो “?
ये सुनते ही मोनू अचकचा जाता है. उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं. उसे ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी.
उसे जब कुछ समझ में नहीं आया तो वो फूट -फूट कर रोने लगा.
मनहरण के इस रोने पर देश द्रवित हो उठा.

मुम्बई से अभिनेता के एनजीओ से आये पैसों से कुछ दिन मजे से बीते.
मुम्बई के पैसों का मधुमास खत्म हुआ तो भोजपुरी सिनेमा के अभिनेताओं की मदद ने कुछ दिन बिरयानी और यूट्यूब के खर्चे निकलवाये.
माइक ने फिर मोनू को और मोनू ने फिर माइक को याद किया.
माइक ने पूछा –
“सरकार और सेलेब्रिटी लोगों ने आपकी क्या मदद की. अब आपकी पढाई कैसी चल रही है “?
मोनू ने कहा –
“प्रधानमंत्री को हमको फोन करके आश्वासन देना चाहिये कि वो हमारे बड़े होने तक हमारी पढाई का पूरा खर्चा उठाएंगे. कल वो पीएम नहीं रह गए तो हमारी पढ़ाई अधूरी रह सकती है “.
“और सेलिब्रिटी लोग ने क्या दिया” माइक ने पूछा ?
“वो लोग हमको खाली किताब, बैग वगैरह भेजे थे. भोजपुरी के स्टार ने कहा था कि हमको अर्टिगा गाड़ी भेज देंगे ,और ड्राइवर का भी खर्चा देंगे. अब आप बताइये गाड़ी नहीं होगा तो हम स्कूल कैसे जाएंगे. मुम्बई के हीरो लोग कहे थे कि हमारा पक्का घर बनवा कर उसमें एसी लगवा देंगे. अब आप ही बताइए कि इतना गर्मी में हम कैसे पढ़े. ये भोजपुरी और मुंबई वाले हीरो सब झूठे हैं ये सब नहीं चाहते कि मेरे जैसा गरीब का बच्चा पढ़े और आईएएस बने , ये सरकार का भी जिमेदारी है कि हमको ये सब चीज का मदद करे ताकि मैं आइएएस बनकर देश को आगे ले जा सकूं”.
माईक ने कहा “बाईट ओके ,कैमरा बंद करो ,जॉब डन “.
कैमरा रख दिया गया.

मोनू ने अब मेकअप उतार दिया.
माइक नीचे रखकर माइक वाले ने पूछा –
“आपका दाखिला सैनिक स्कूल में हुआ था , वहां रहने -खाने की दिक्क्त थी क्या ?आखिर आप क्यों वापस आ गए” ?
मोनू ने सतर्क नजरों से माइक और कैमरा दोनों को देखा और पूछा –
“ये सब बंद है ना , कुछ रिकार्ड तो नहीं होगा अब” ?
मीडिया वालों ने सहमति में सिर हिला दिए. तसल्ली पाने के बाद मोनू ने कहा –
“ देखिये वहाँ खाने -पीने का तो बहुत आराम था. चिकन -मटन, अंडा, फल सब था. लेकिन कुछ चीज का पाबंदी था एक तो हमको मोबाईल नहीं चलाने देते थे, ना यूट्यूब और ना कोई रील. रात को दो -तीन घण्टा हम ये सब ना चलाएं तो हमको नींद ही नहीं आता. दूसरा हमको सबेरे -सबेरे जगा देते थे. ये बात हमको बहुत खलता था, हम सबेरे उठ जाते तो गांव के स्कूल ही ना पढ़ने चले जाते. मीडिया वालों से भी हमको मिलने नहीं देते थे, इसी सब पाबंदी की वजह से हम वहां से चले आये. यहीं कुछ ना कुछ जुगाड़ होता रहेगा आप मीडिया वालों की कृपा से”
ये कहकर मोनू हंसने लगा.

कैमरा और माइक रखा तो था मगर आफ नहीं था. मीडिया तो ऐसी जगह कि जहाँ शिकारी खुद शिकार हो जाता है कभी- कभी.
ये ऑफ द स्क्रीन खबर वायरल कर दी गयी. मोनू की बड़ी लानत -मलानत हुई. इस एक्सक्लुसिव खबर की टीआरपी बढ़ती गई और कुछ दिनों में मोनू को मीडिया ने विक्टिम से विलेन बना दिया.
लेकिन मोनू और मीडिया का खेला चलता रहता है. वैसे तो वो सामान्य रहता है लेकिन जैसे ही मीडिया के कैमरे की जद में वो आता है वो चीखने -चिल्लाने लगता है और अपना सर पीटने लगता है और जार -जार रोता है.
मीडिया के लोग ये देखकर असमंजस में पड़ गए. उन्होंने दरयाफ्त की तो किसी गांव वाले ने बताया कि -देहरादून में दिमाग के मरीजों का एक अस्पताल है ,सुना है वहाँ पर रहने -खाने का बहुत अच्छा इतंजाम है ,एक स्मार्ट टीवी भी लगा है जिसमें यूट्यूब और फेसबुक रील भी आता है ,यही बात गांव में फैली है “.
मीडिया ने उस आदमी से पूछा-
“इस सबसे उस लड़के के रोने -चीखने से क्या मल्लब “?
गाँव का आदमी ये सुनकर मीडिया वाला पर खीं खीं करके हंसता है.
ये सब पढ़कर आप क्यों हंसने लगे.
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हास्य-व्यंग्य लेखक – दिलीप कुमार